Indian Nobel Prize Winners in HINDI Language

Indian Nobel Prize Winners in HINDI Language

नमस्कार दोस्तों, हाजिर है SarkariJobGuide की टीम लेकर एक बेहद ही महत्वपूर्ण विषय “Indian Nobel Prize Winners in HINDI Language”इस Nobel Prize Winners List की पोस्ट में आपको भारत एवं भारतीय मूल के उन सभी महान व्यक्तियों के बारे में जानने का अवसर प्राप्त होगा जिन्हें विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार यानि की नोबेल पुरस्कार, Nobel Prize से सम्मानित किया गया है| इस Nobel Prize Winners List विषय से लगभग हर परीक्षा में प्रश्न पूछे जाते है| आप सभी Student के लिए यह Indian Nobel Prize Winners in HINDI Language की पोस्ट बहुत ही जयादा लाभदायक है| एकबार अवश्य इस Nobel Prize Winners List की पोस्ट को जरुर पढ़े|

आप की आगामी परीक्षा की दृष्टी से यह नोबेल पुरस्कार की पोस्ट बेहद ही महत्वपूर्ण है|

रवींद्रनाथ ठाकुर (1861-1943)

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रवींद्रनाथ ठाकुर, साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे। ‘गुरुदेव’ के नाम से प्रसिद्ध रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता में हुआ। उन्हें उनकी कविताओं की पुस्तक गीतांजलि के लिए 1913 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया। रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक प्रेमगीत भी लिखे हैं। गीतांजलि और साधना उनकी महत्वपूर्ण कृतियां हैं। महान कवि, नाटककार और उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्ध ‘गुरुदेव’ ने भारत के राष्ट्र गान का भी प्रणयन किया। सन 1901 में उन्होंने शांतिनिकेतन की स्थापना की, जो बाद में विश्वभारती विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

चंद्रशेखर वेंकटरमन (1888-1970)

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भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय डॉ. चंद्रशेखर वेंकटरमन थे। उन्हें 1930 में यह पुरस्कार प्राप्त हुआ। रमन का जन्म तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली के पास तिरुवाइक्कावल में हुआ था। उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की। बाद में वह कोलकाता विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र के प्रोफेसर बने। चंद्रशेखर वेंकटरमन ने अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए। उन्हें ‘सर’ की उपाधि से भी सम्मानित किया गया और प्रकाशकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। उन्होंने अपने अनुसंधान में इस बात का पता लगाया कि किस तरह अपसरित प्रकाश में अन्य तरंग, लंबाई की किरणें भी मौजूद रहती हैं। उनकी खोज को रमन प्रभाव के नाम से भी जाना जाता है। सन 1928 में की गई इस खोज से पारदर्शी माध्यम से होकर गुजरने वाली प्रकाश किरणों में आवृत्ति परिवर्तन की व्याख्या की गई है।

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हरगोबिंद खुराना (1922-2011)

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हरगोबिंद खुराना को चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया। भारतीय मूल के डॉ. खुराना का जन्म पंजाब में रायपुर (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। उन्होंने लिवरपूल विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में डाक्टरेट की डिग्री ली। सन 1960 में वह विस्कौसिन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने। डॉ खुराना ने जीन इंजीनियरिंग (बायो टेक्नोलॉजी) विषय की बुनियाद रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जेनेटिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका प्रतिपादित करने के लिए सन 1968 में डॉ खुराना को चिकित्सा विज्ञान का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया।

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मदर टेरेसा (1910-1997)

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मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। मदर का जन्म अल्बानिया में स्कोपजे नामक स्थान पर हुआ था, जो अब यूगोस्लाविया में है। उनका बचपन का नाम एग्नस गोंक्सहा बोजाक्सिऊ था। सन 1928 में वह आयरलैंड की संस्था सिस्टर्स आफ लोरेटो में शामिल हुईं और मिशनरी बनकर 1929 में कोलकाता आ गईं। उन्होंने बेसहारा और बेघरबार लोगों के दुख दूर करने का महान व्रत लिया। निर्धनों और बीमार लोगों की सेवा के लिए उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी नाम की संस्था बनाई और कुष्ठ रोगियों, नशीले पदार्थों की लत के शिकार बने लोगों तथा दीन-दुखियों के लिए निर्मल हृदय नाम की संस्था बनाई। यह संस्था उनकी गतिविधियों का केंद्र बनी। उन्होंने पूरी निष्ठा से न सिर्फ बेसहारा लोगों की निःस्वार्थ सेवा की, बल्कि विश्व शांति के लिए भी प्रयास जारी रखे। उन्हीं की बदौलत भारत शांति के लिए अपने एक नागरिक द्वारा नोबेल प्राप्त करने का गौरव प्राप्त कर सका है।

सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर(1910-1995)

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सन 1983 में भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर खगोल भौतिक शास्त्री थे। उनकी शिक्षा चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई। वह नोबेल पुरस्कार विजेतर सर सी.वी. रमन के भतीजे थे। बाद में चंद्रशेखर अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने खगोल भौतिक शास्त्र तथा सौरमंडल से संबंधित विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं। उन्होंने ‘व्हाइट ड्वार्फ’ यानी श्वेत बौने नाम के नक्षत्रों के बारे में सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इन नक्षत्रों के लिए उन्होंने जो सीमा निर्धारित की है, उसे चंद्रशेखर सीमा कहा जाता है। उनके सिद्धांत से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में अनेक रहस्यों का पता चला।

अमर्त्य सेन (जन्मः 1933)

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अर्थशास्त्र के लिए 1998 का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रोफेसर अमर्त्य सेन पहले एशियाई हैं। शांतिनिकेतन में जन्मे इस विद्वान अर्थशास्त्री ने लोक कल्याणकारी अर्थशास्त्र की अवधारणा का प्रतिपादन किया है। उन्होंने कल्याण और विकास के विभिन्न पक्षों पर अनेक पुस्तकें तथा पर्चे लिखे हैं। प्रोफेसर सेन आम अर्थशास्त्रियों के समान नहीं हैं। वह अर्थशास्त्री होने के साथ-साथ, एक मानववादी भी हैं। उन्होंने, अकाल, गरीबी, लोकतंत्र, स्त्री-पुरुष असमानता और सामाजिक मुद्दों पर जो पुस्तकें लिखी हैं, वे अपने-आप में बेजोड़ हैं। केनेथ ऐरो नाम के एक अर्थशास्त्री ने असंभाव्यता सिद्धांत नाम की अपनी खोज में कहा था कि व्यक्तियों की अलग-अलग पसंद को मिलाकर समूचे समाज के लिए किसी एक संतोषजनक पसंद का निर्धारण करना संभव नहीं है। प्रोफेसर सेन ने गणितीय आधार पर यह सिद्ध किया है कि समजा इस तरह के नतीजों के असर को करने के उपाय ढूंढ सकता है।

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वीएएस नायपॉल

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विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल का जन्म 17 अगस्त सन 1932 कोट्रिनिडाड के चगवानस (Chaguanas) में हुआ।ऐसी धारणा है कि इनके पूर्वज गोरखपुर के भूमिहार ब्राह्मण थे जिन्हें ट्रिनिडाड ले जाया गया इसलिये इस परिवार को भारत छोडना हुआ| (1932) ट्रिनिडाड में जन्मे भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार (2001 साहित्य के लिये) विजेता लेखक हैं। उनकी शिक्षा ट्रिनिडाड और इंगलैंड में हुई। वे दीर्घकाल से ब्रिटेन के निवासी हैं। उनके पिताजी श्रीप्रसाद नैपाल, छोटे भाई शिव नैपाल, भतीजे नील बिसुनदत, चचेरे भाई वह्नि कपिलदेव सभी नामी लेखक रहे हैं। पहले पत्रकार रह चुकीं श्रीमती नादिरा नैपाल उनकी पत्नी हैं।इनका सबसे महान उपन्यास “ए हौस फार मिस्टर बिस्वास” है।

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वेंकट रामाकृष्णन (जन्म:1952 तमिलनाडु)

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एकजीव वैज्ञानिक हैं। इनको 2001 के रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इन्हें यह पुरस्कार कोशिका के अंदर प्रोटीन का निर्माण करने वाले राइबोसोम की कार्यप्रणाली व संरचना के उत्कृष्ट अध्ययन के लिए दिया गया है। इनकी इस उपलब्धि से कारगर प्रतिजैविकों को विकसित करने में मदद मिलेगी। इसराइली महिला वैज्ञानिक अदा योनोथ और अमरीका के थॉमस स्टीज़ को भी संयुक्त रूप से इस सम्मान के लिए चुना गया। तीनों वैज्ञानिकों ने त्रि-आयामी चित्रों के ज़रिए दुनिया को समझाया कि किस तरह राइबोसोम अलग-अलग रसायनों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं, इसके लिए उन्होंने एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफ़ी का सहारा लिया जो राइबोसोम्ज़ की हज़ारों गुना बड़ी छवि सामने लाता है। वर्तमान में श्री वेंकटरामन् रामकृष्णन् ब्रिटेन के प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से जुड़े हैं एवं विश्वविद्यालय की एमआरसी लेबोरेट्रीज़ ऑफ़ म्यलूकुलर बायोलोजी (पेशीय जीवविज्ञान की एमआरसी प्रयोगशाला) के स्ट्रकचरल स्टडीज़ (संरचनात्मक अध्ययन) विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक हैं।

वेंकी के नाम से मशहूर वेंकटरामन सातवें भारतीय एवं तीसरे तमिल मूल के व्यक्ति हैं जिनको नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु के चिदंबरम में हुई

आर के पचौरी– (जन्म- 2० अगस्त 1940)

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भारतीय पर्यावरणविद राजेन्द्र कुमार पचौरी की अध्यक्षता वाले आईपीसीसी (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) को साल 2007 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार आईपीसीसी को अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर के साथ संयुक्त रूप से मिला है।आर.के. पचौरी का जन्म 20 अगस्त 1940 को नैनीताल में हुआ था। 1981 में वह टेरी (द एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट) के डाइरेक्टर बने। 2001 में पचौरी ने इस संस्थान के डाइरेक्टर जनरल का पद संभाला।अब तक विविध सब्जेक्ट्स पर 21 किताबें लिख चुके पचौरी 20 अप्रैल 2002 को आईपीसीसी के अध्यक्ष चुने गए। तबसे वह इस पद पर कार्य कर रहे हैं। अब तक जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़े तमाम संस्थानों और फोरम में पचौरी ने एक्टिव भूमिका निभाई है। पर्यावरण के क्षेत्र में उनके महत्वूपर्ण योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2001 में पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया।

डीएलडब्ल्यू वाराणसी से अपने करियर की शुरुआत करनेवाले राजेन्द्र कुमार पचौरी ने अमेरिका के करोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी, रेलिग से इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग और इकोनॉमिक्स में डॉक्ट्रेट की डिग्री हासिल की है। 1974 से 1975 तक को वह इसी यूनिवर्सिटी में इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग विभाग में असिस्टेंट प्रफेसर रहे। अमेरिका से भारत लौटने के बाद पचौरी ने कई महत्वूपर्ण सरकारी पदों पर काम किया। जनवरी 1999 में वह इंडियन ऑयल कार्पोरेशन के अध्यक्ष बने और तीन साल तक इस पद पर रहे। पर्यावरण से जुड़े तमाम मुद्दो पर इनके बहुत सारे आर्टिकल देश-विदेश के महत्वपूर्ण न्यूजपेपर्स और साइंस मैगजीन में छप चुके हैं।

कैलाश सत्यार्थी-(जन्म-11 जनवरी 1954)

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सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी 1954 को भारत में मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में हुआ था. उनका वास्तविक नाम कैलास शर्मा है.उन्होंने गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकण्ड्री स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा और सम्राट अशोक टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट, विदिशा से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की और फिर हाई-वोल्टेज इंजीनियरिंग में उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन की उपाधि प्राप्त की. 2014 में सत्यार्थी को विश्व के सबसे सम्मानित पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया, इस पुरस्कार कैलास सत्यार्थी के साथ-साथ पाकिस्तान की निवासी मलाल युसुफजई को भी दिया गया है सत्यार्थी को बहुत से पुरस्कार और सम्मानों से विश्व जगत में नवाजा गया है.

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