भारत का संवैधानिक इतिहास-एक्ट 1773 से एक्ट 1853 तक हिंदी में ( For All Competitive Exam)

पोस्ट में हम आपको भारत का संवैधानिक इतिहास-एक्ट 1773 से एक्ट 1853 तक |  के बारे में जानकारी देंगे, क्युकी इस टॉपिक से लगभग 1 या 2 प्रश्न जरूर पूछे जाते है तो आप इसे जरूर पड़े अगर आपको इसकी पीडीऍफ़ चाहिये तो कमेंट के माध्यम से जरुर बताये| आप हमारी बेबसाइट को रेगुलर बिजिट करते रहिये, ताकि आपको हमारी डेली की पोस्ट मिलती रहे और के आपकी तैयारी पूरी हो सके|

भारत का संवैधानिक इतिहास-एक्ट 1773 से एक्ट 1853 तक

प्रिय छात्रों हम इसमें पढ़ेंगे की भारत के सविंधान के निर्माण में किस प्रकार ब्रिटिश कानून व नियम सहायक हुए। इसमें हम देखेंगे की किस प्रकार अंग्रेजो ने व्यापार करने के साथ साथ भारतीय क्षेत्रो शासन करना स्टार्ट कर दिया।
भारतीय सविंधान का इतिहास -हम सभी जानते हैं की भारत पर शासन-Bhartiya Savindhan Ka Itihas

  • 1773 से लेकर 1853 तक जो कानून या अधिनियम बनाये गए उनके द्वारा शासन ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया।
  • 1858 से लेकर 1947 तक शासन ब्रिटिश सम्राट द्वारा किया गया।

इसमें हम पढ़ेंगे भारत का संवैधानिक इतिहास एक्ट 1773-से एक्ट 1853 तक-Constitutional History Of India। बाकी के एक्ट इसी के भाग-2 में कवर किया जाएगा

निम्नलिखित दिए गए प्रश्नों का जवाब हम इस टॉपिक में ढूढने का प्रयास करेंगे -भारतीय सविंधान

  1. चार्टर एक्ट लाने के क्या कारण थे-What were the reasons for bringing Charter Act
  2. गवर्नर की नियुक्ति कौन करता था-Who used to appoint a governor
  3. किस एक्ट द्वारा ब्रिटिश सम्राट का EIC पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण हुआ-By which act the British Emperor had indirect control over the EIC
  4. किस एक्ट के तहत गवर्नर जनरल को मुख्य सेनापति भी बनाया गया-Under which act, the Governor General was also made the Chief Commander
  5. किस एक्ट के तहत पहली बार बीओसी के सदस्यों को व कर्मचारियों को वेतन भत्ते भारतीय राजस्व से देने का प्रावधान किया गया।
  6. किस एक्ट के द्वारा ईसाई मिशनरियों को भारत आने का मार्ग मार्ग प्रशस्त हुआ-Which act paved the way for Christian missionaries to come to India
  7. केंद्रीयकृत शासन प्रणाली कब स्टार्ट हुई-When did the centralized governance system start
  8. दास प्रथा को अवैध कब घोषित किया गया-When was slavery declared illegal
  9. नियुक्ति में नामज़दगी अधिकार कब समाप्त कर दिया गय-When was the nomination right terminated in the appointment

तो चलिए शुरू करते है ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार से शासन तक का सफर-(East India Company’s journey from business to governance)

भारत में ब्रिटिश शासन को मजबूत और अनुकूल बनाने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा कई एक्ट पारित किए गए जो भारत के संवैधानिक विकास में सहायक हुए। 1757 ईस्वी की प्लासी के युद्ध व 1764 ईस्वी के बक्सर के युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का बंगाल पर शासन का शिकंजा कसा अर्थात अब ये व्यापार के साथ साथ प्रशासन के कार्य भी करने लगे।

ब्रिटिश संसद द्वारा पारित प्रमुख एक्ट -प्रमुख राज लेख एवं चार्टर एक्ट-ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार से शासन तक का सफर 

भारतीय सविंधान का इतिहास-इसमें हम देखेंगे किस प्रकार और कब कब कंपनी पर संसदीय नियंत्रण हेतु कानूनों से सम्बंधित एक्ट बनाये गए। तथा इनका किस प्रकार प्रयोग किया गया और  इसमें समय समय पर क्या बदलाव किये गए।

1773 का रेगुलेटिंग एक्ट

ईस्ट इंडिया कंपनी पर इंग्लैंड की संसद द्वारा अप्रत्यक्ष संसदीय नियंत्रण हेतु पहली बार राजनैतिक प्रशासन हेतु लिखित नियम बनाए गए। इसके द्वारा बंगाल मुंबई तथा मद्रास की प्रेसिडेंसी को बंगाल के गवर्नर के अधीन कर दिया गया तथा बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल नाम दिया गया। इस प्रकार प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स बने। पूर्व गवर्नर थे लार्ड क्लाइव। कंपनी का प्रशासन 4 सदस्यों वाली एक परिषद को सौंपा गया जिसमें गवर्नर जनरल प्रधान था।

इन सदस्यों में क्लेवरिंग मानसन बरवेल व फिलिप थे। इनका कार्यकाल 5 साल का होता था। गवर्नर जनरल को कंपनी के प्रशासन वाले क्षेत्रों पर नियम बनाने का अधिकार दिया गया। कंपनी के कार्यो पर ब्रिटिश संसद के नियंत्रण हेतु गवर्नर जनरल के दस्तावेज की कॉपी ब्रिटिश सरकार के सम्मुख प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया
इस एक्ट के द्वारा कोलकाता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अन्य न्यायाधीश थे। मुख्य न्यायाधीश सर एलिजाह इम्पे तथा अन्य चैंबर्स, लिमेस्टर व हाइड थे।  इनके निर्णय के विरुद्ध इंग्लैंड के प्रिवी काउंसिल में अपील की जा सकती थी।

1781 ईस्वी का एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट

रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने हेतु इसको लाया गया। कोलकाता की सरकार को बंगाल बिहार और उड़ीसा के लिए भी कानून बनाने का अधिकार दिया गया।  गवर्नर जनरल की परिषद को सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता से मुक्त कर दिया गया।

1784 का पिट्स इंडिया एक्ट

ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक गतिविधियों पर पूर्ण नियंत्रण हेतु कैबिनेट ने हाउस ऑफ लॉर्ड्स में एक बिल पारित किया लेकिन कंपनी के अंश धारकों के प्रभाव के कारण या बिल आगे हाउस ऑफ कॉमंस में पारित नहीं हो पाया फलस्वरुप लॉर्ड नॉर्थ तथा लॉर्ड फॉक्स की गठबंधन सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा। किसी भारतीय मामले पर ब्रिटिश पतन का पहला दृष्टांत था। 
नई कैबिनेट का मुख्य विलियम पीट बना इस प्रकार ब्रिटेन का नया प्रधानमंत्री लॉर्ड विलियम बना।  कंपनी की आपत्तियों को ध्यान में रखकर नया बिल 1784 में पारित किया। इसमें कंपनी की गतिविधियों हेतु दोहरे शासन का प्रारंभ हुआ। इसके अनुसार कंपनी के व्यापारी और  आर्थिक मामलें हेतु कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर तथा राजनीतिक नियंत्रण हेतु बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल का गठन किया गया। बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल में 6 सदस्य थे जो सम्राट द्वारा नियुक्त होते थे। भारत के गवर्नर जनरल की नियुक्ति बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल के माध्यम से ब्रिटिश सरकार की अनुमति से किया जाना निर्धारित हुआ। गवर्नर जनरल की परिषद संख्या 4 से 3 कर दी गई। कंपनी के कर्मचारियों का उपहार लेना बंद कर दिया गया। इंग्लैंड में एक कोर्ट की स्थापना की गई तथा कंपनी के क्षेत्र को ब्रिटिश अधिकृत क्षेत्र कहा गया।

1786 का चार्टर एक्ट

इस एक्ट द्वारा भारत के गवर्नर जनरल के पद को अधिक शक्तिशाली बनाया गया। गवर्नर जनरल को अपनी परिषद के बहुमत के निर्णय पर वीटो का  विशेषाधिकार प्रदान किया गया। अब गवर्नर जनरल वीटो का प्रयोग कर अपने परिषद के निर्णय को उलट सकता था। गवर्नर जनरल को भारत में मुख्य सेनापति की शक्तियां भी प्रदान की गई। लार्ड कार्नवालिस पहले व्यक्ति थे जिन्हें गवर्नर जनरल तथा मुख्य सेनापति दोनों की शक्तियां प्रदान की गई।

1793 का चार्टर एक्ट

इस एक्ट द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को आश्वस्त किया गया कि भारत के साथ व्यापार के उसके विशेषाधिकार को अगले 20 वर्ष तक बढ़ा दिया गया है। इस एक्ट द्वारा सम्राट द्वारा नियुक्त बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सदस्य और कर्मचारियों के वेतन भत्ते भारतीय राजस्व से देने का प्रावधान किया गया इसके अतिरिक्त प्रांतीय गवर्नरो को भी अपने परिषद के विरुद्ध वीटो की शक्ति प्रदान की गई।

1813 ईसवी का चार्टर एक्ट

भारतीय क्षेत्रों पर कंपनी का अधिकार 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया। परन्तु भारत के साथ व्यापार का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया अर्थात अब कोई भी ब्रिटिशवासी भारत के साथ व्यापार कर सकता था तथा निवास कर सकता था। इस एक्ट के द्वारा ईसाई धर्म प्रचार हेतु ईसाई मिशनरियों की भारत में स्थापना का मार्ग खुल गया। कंपनी ने भारत के चाय बागानों में काफी निवेश रखा था अतः कंपनी का चाय के व्यापार को तथा चीन के साथ व्यापार का एकाधिकार बना रहने दिया गया। भारत में शिक्षा के प्रसार हेतु एक लाख प्रति वर्ष निर्धारित किया गया था।

1833 का चार्टर एक्ट

यह विस्तृत व प्रभावकारी एक्ट था।  इस एक्ट के तहत कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए।  अब कंपनी का कार्य केवल शासन करना रह गया था। भारत के साथ व्यापार सभी ब्रिटिश नागरिकों हेतु खोल दिया गया। भारत में ब्रिटिश लोगों की संख्या बढ़ने के कारण भारतीय कानूनों को उनके अनुरूप ढाला जाना आवश्यक हुआ। गवर्नर जनरल को आयोग गठित करने का अधिकार दिया गया। इस प्रकार कानून बनाए जाने के लिए एक विधि आयोग का गठन हुआ। तथा गवर्नर जनरल की परिषद में एक विधि सदस्य नियुक्त हुआ। लॉर्ड मैकाले प्रथम विधिक सदस्यता था तथा यह विधि आयोग का अध्यक्ष बना बंगाल के गवर्नर जनरल का संपूर्ण भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया। इस प्रकार भारत का प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक बने। इन्हें संपूर्ण भारत पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया। इस प्रकार भारत में केंद्रीयकृत शासन प्रणाली स्टार्ट हुई।
मुंबई व मद्रास के परिषदो की विधि बनाने की शक्ति वापस ले ली गई।
गवर्नर जनरल की परिषद को राजस्व संबंधी पूर्ण अधिकार दिया गया।
इस एक्ट के तहत योग्यता को कंपनी के कर्मचारियों की नियुक्ति का आधार बनाया गया। तथा इन्हें निवास, धर्म, जाति, रंग के आधार पर अयोग्य न ठहराये जाने का प्रावधान किया गया। इस प्रकार सभी निवासियों को बराबरी पर लाने का प्रयास किया गया। इस एक्ट के तहत गवर्नर जनरल ने दासों की  में सुधार लाने का प्रयास किया। जिसके कारण 1843 में कानून बनाकर दास प्रथा का उन्मूलन कर दिया गया। इसका श्रेय लार्ड एलनबरो को जाता है। नियंत्रक मंडल को विशेष परिस्थितियों में अधिकार दिया गया कि वह भी कानून बना सकते हैं तथा गवर्नर जनरल के कानून को रोक सकते थे।

1853 ईसवी का चार्टर एक्ट

यह ब्रिटिश भारत के इतिहास का अंतिम चार्टर यानी राजलेखथा। इस एक्ट के द्वारा भारत में असैनिक (सेवा सिविल सर्विस) की नियुक्ति के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का आरंभ किया गया। इसकी नियुक्ति में नामजदगी का अधिकार समाप्त कर दिया गया। विधि निर्माण हेतु 12 सदस्य अखिल भारतीय विधायी परिषद की स्थापना की गई। इसमें विभिन्न प्रांतों के प्रतिनिधियों को शामिल कर क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया। इसके द्वारा विधायक कार्यों को प्रशासनिक कार्यों से अलग कर दिया गया।
बंगाल के प्रशासनिक कार्य हेतु अलग से एक लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति हुई।

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