कोयला संसाधन के बारे में रोचक जानकारियाँ हिंदी में ( For All Competitive Exam)
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कोयला संसाधन के बारे में रोचक जानकारियाँ
परिचय
- कोयला संसाधन एक गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत यानी अनवीकरणीय संसाधन है।
- अनवीकरणीय संसाधन, वे संसाधन होते हैं, जिनके भंडार में प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनर्स्थापन नहीं होता है।
- कोयला संसाधन मानवीय क्रियाओं द्वारा समाप्त हो जाते हैं तथा पुनः निर्माण होने में इन्हें करोड़ों वर्ष लग जाते हैं।
- कोयला एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में, प्रयोग में लाया जाता है।
- ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- विद्युत उत्पादन के लिये प्रयुक्त कोयला ‘ऊष्मीय कोयला’ कहलाता है जबकि इस्पात निर्माण के लिये आवश्यक कोक के उत्पादन के लिये जो कोयला प्रयुक्त होता है उसे ‘कोकिंग कोल’ कहते हैं।
भारत में कोयला के भंडार तथा उत्पादन क्षेत्र
- भारत में कोयला संसाधन ऊर्जा का प्रमुख संसाधन है। देश की कुल व्यवसायिक ऊर्जा का 67% उत्पादन कोयले से होता है। कोयला भारत के गोंडवाना और तृतीय महाकल्प चरण वाले चट्टानों से मिलता है। लगभग 75% कोयले का भंडार दामोदर नदी-घाटी में है। प. बंगाल में रानीगंज और बिहार में झरिया, छत्तीसगढ़ में गिरिडीह और बोकारो से कोयला मिलता है। इसके अलावा मध्यप्रदेश की सतपुड़ा श्रेणी तथा छत्तीसगढ़ के मैदानों से भी कोयला मिलता है।
- अधिकतर कोयले के भंडार भारत के पूर्वी और मध्य भागों में केन्द्रित हैं, जबकि ताप-विद्युत संयंत्र सर्वत्र बिखरे हुए हैं । इसके कारण कोयले की लंबी-लंबी दूरी तक ढुलाई की आवश्यकता पड़ती है।
- भारत में चार प्रकार के कोयला संसाधन पाए जाते हैं: एन्थ्रेसाइट (सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले कोयले है जो केवल जम्मू एवं कश्मीर में); बिटुमिनस (कोयले की दूसरी सबसे अच्छी गुणवत्ता); लिग्नाइट (तमिलनाडु, राजस्थान, गुजरात और जम्मू और कश्मीर में मिला); पीट (यह कोयले में लकड़ी के परिवर्तन का यह पहला चरण का कोयला है जिसमें मात्र 35 प्रतिशत कार्बन ही होता है)।
कोयले के प्रकार तथा उनकी विशेषताएं
पीट
- इस कोयले में नमी की मात्रा अधिक होती है तथा इससे ज्यादा धुआं उठता है।
- इसमें कार्बन की मात्रा 40% से कम होती है तथा इसलिए यह सबसे निचले एवं निम्न कोटि का कोयला माना जाता है।
- यह कोयले के निर्माण के पहले चरण को निरूपित करता है।
लिग्नाइट
- लिग्नाइट पीट से उत्तम किस्म का कोयला है। बढ़ते दाब तथा गर्मी के कारण समय के साथ-साथ पीट, लिग्नाइट कोयले में परिवर्तित होता है।
- लिग्नाइट में 40% से 60% कार्बन की मात्रा होती है।
- यह मुख्यतः नेवेली, पालन लखीमपुर-असम, जयंतिया पहाड़िया-मेघालय, नागालैंड, केरल, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश में पाया जाता है।
- भारत में लिग्नाइट भंडार के 36,000 मीट्रिक टन होने का अनुमान है।
बिटुमिनस कोयला
- जब कोयला जमीन में अधिक गहराई पर दफन होता है तो उसकी नमी समाप्त हो जाती है। बिटुमिनस सघन ठोस तथा काले रंग का होता है।
- इसमें मूल वनस्पति, जिससे यह कोयला निर्मित होता है, के अंश देखे जा सकते हैं।
- इस कोयले में कार्बन की मात्रा 60% से 80% के बीच होती है तथा यह वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए सबसे प्रसिद्ध कोयला है।
- इस कोयले का नाम ‘बिटुमिन तरल’ के नाम पर रखा गया है, जिसे इस कोयले को गर्म करने पर प्राप्त किया जाता है।
- बिटुमिनस कोयले का उपयोग ‘कोक यानी’ कि कोकिंग कोयला, गैस कोयला तथा स्टीम कोयला बनाने के लिए किया जाता है।
- कोकिंग कोल कोयले को बगैर ऑक्सीजन गर्म करके प्राप्त किया जाता है जिसके कारण वाष्प जल जाती है तथा इसका उपयोग मुख्यतः लोह एवं इस्पात उद्योग में किया जाता है। ज्यादातर बिटुमिनस कोयला झारखंड, उड़ीसा,छत्तीसगढ़,पश्चिमी बंगाल तथा मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
एन्थ्रेसाइट कोयला
- सबसे उच्च कोटि का कोयला है जिसमें 80% से 90% कार्बन की मात्रा होती है। इसमें वाष्पशील पदार्थ की मात्रा बहुत कम होती है तथा नमी की मात्रा नगण्य होती है।
- इस कोयले की नीली ,लघु लौ होती है। यह सबसे महंगे कोयले की किस्म है।
- कोयले का वितरण क्षेत्र झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिमी बंगाल, मध्य प्रदेश तथा आंध्र प्रदेश कोयले के प्रमुख भंडार रखते हैं।
- इन राज्यों में कोयले का भंडार का एक संक्षिप्त विवरण-
- झारखंड राज्य में देश के कुल कोयले के भंडार का 29% हिस्सा है तथा कोयले के भंडार एवं उत्पादन के मामले में झारखंड का देश में पहला स्थान है।
- यहां का अधिकांश कोयला गोंडवाना काल का है। मुख्य केंद्र है – बोकारो, डाल्टनगंज, धनबाद, झरिया, करणपुर तथा रामगढ़ कोयला क्षेत्र।
- उड़ीसा में देश के कुल कोयला भंडार का 24% हिस्सा है, अतः देश के कुल कोयले के उत्पादन में इसका योगदान लगभग 15% है।
- उड़ीसा के ज्यादातर कोयले के भंडार केनाल संबलपुर तथा सुंदरगढ़ जिलों में है। उड़ीसा के प्रमुख कोयला क्षेत्र तलचर कोयला क्षेत्र है।
- छत्तीसगढ़ राज्य में देश का तीसरा सबसे बड़े कोयले के भंडार है लेकिन उत्पादन के मामले में इसका दूसरा स्थान है।
- मुख्य भंडार-बिलासपुर, बेतूल छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, रायगढ़ जिलों में पाए गए हैं।
गोंडवाना कोयला गोंडवाना तथा टर्शियरी युग का कोयला
- गोंडवाना क्रम की श्रेणियों का निर्माण मध्य कार्बनी काल में हुआ था । इसकी द्रोणियो में ऊपरी कार्बनी युग से जुरैसिक युग तक की अवधि में अवसादों का जमाव हुआ।
- अवसादों के जमाव के कारण इनका आकार काफी बड़ा होता गया।
- अनुकूल वायुमंडलीय परिस्थितियों के कारण इस क्षेत्र में घने वन उग आए, जो हरसीनियन हलचलों के कारण मलबे में दब गए।
- ये क्रम काफी बड़े क्षेत्र में लंबे समय तक चलता रहा जिसके कारण इस क्षेत्र में कोयले के विशाल भंडार मिलते है।
- मध्य प्रदेश के प्राचीन गोंड राज्य के नाम पर इस क्षेत्र को गोंडवाना नाम दिया गया।
- भारतीय भूभाग से जुड़े अन्य हिस्से ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका तथा अंटार्कटिका तक, मिलते है।
- भारत में इसका विस्तार 4 प्रमुख भागो में मिलता है –
- दामोदर नदी घाटी क्षेत्र
- महानदी घाटी
- गोदावरी ,वेनगंगा घाटी
- कच्छ, काठियावाड़, पश्चिम राजस्थान, तथा हिमालयी क्षेत्र के कुछ भाग।
- गोंडवाना कोयला कार्बोनीफरस काल का कोयला है। यह दामोदर महानदी गोदावरी तथा नर्मदा घाटी में पाया जाता है।
- गोडवाना समूह के कुछ मुख्य कोयले की खान – रानीगंज, झरिया, बोकारो ,रामगढ़ ,गिरिडीह, चंद्रपुर, करणपुरा, तातापानी, तालचर, हिमगिरी, कोरबा घाटी सरगुजा, वर्धा घाटी, सिंगरेनी तथा सिंगरौली।
टर्शियरी कोयला
- यह कोयला टर्शियरी युग के अधिनूतन काल के शैलों में पाया गया है। यह कोयला 15 से 7 मिलियन वर्ष पुराना है।
- यह कोयला भारत की कुल कोयला उत्पादन का मात्र 2% है। यह एक निम्न कोटि का कोयला है जिसमें कार्बन की मात्रा गुजरात तथा राजस्थान में 30% से लेकर असम में 50% तक है।
- लिग्नाइट कोयला अरुणाचल प्रदेश, असम,गुजरात, केरल, जम्मू एवं कश्मीर ,नागालैंड तमिलनाडु ,उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल में पाया जाता है। देश में विभिन्न लिग्नाइट का सबसे बड़ा भंडार तमिलनाडु में नेवली में है।
टर्शियरी युग के कोयले के भंडार:
- इस युग का कोयला अरुणाचल प्रदेश,असम, मेघालय, नागालैंड तथा जम्मू-कश्मीर में पाया जाता है और इसे भूरा कोयला भी कहा जाता है। इस कोयले में नमी की मात्रा अधिक होती है तथा कार्बन की मात्रा कम होती है।
तमिलनाडु
- तमिलनाडु में लिग्नाइट का सबसे बड़ा भंडार है यह भंडार नेवेली में है।
- कोयले की परत की मोटाई 10 से 12 मीटर है। इस कोयले में कार्बन तथा नमी की मात्रा क्रमशः 30 से 40 % और 20% होती है जबकि वाष्पशील पदार्थ की मात्रा 40 से 45% के बीच होती है।
राजस्थान
- इस राज्य में लिग्नाइट के भंडार बीकानेर जिले में है। बीकानेर भंडार में कोयले की परत की मोटाई 5 से 15 मीटर के बीच होती है।
- यह निम्न दर्जे का कोयला होता है जिसका उपयोग मुख्यतः तापीय विद्युत संयंत्रों तथा रेलवे द्वारा किया जाता है।
गुजरात
- गुजरात में कोयला भरूच जिले तथा कच्छ में पाया जाता है। यह कोयला निम्न स्तर का होता है जिसमें कार्बन की मात्रा 35% के लगभग होती है तथा इसमें अधिक नमी होती है।
जम्मू एवं कश्मीर
- जम्मू कश्मीर में बारामुला, रायसी उधमपुर जिलों में, बड़गांव में पाया जाता है।
- यह निम्न दर्जे का कोयला है जिसमें 30% से अधिक कार्बन, 15% से अधिक नमी तथा 30% से अधिक वाष्पित पदार्थ की मात्रा होती है।
कोयले का आयात
- भारत 2025 तक कोयला संसाधन के सबसे बड़े आयातक के रूप में चीन से आगे निकल जाएगा।
- फिच सॉल्यूशंस मैक्रो रिचर्स ने कहा कि 2019 से 2028 के बीच भारत में कोयले की खपत सालाना आधार पर 5.4 फीसदी की दर से बढ़ेगी।
- इसका कारण देश में इस्पात उत्पादन में एक समान रूप से मजबूत विस्तार होना है।
- संकेतक बताते हैं कि भारत, ऑस्ट्रेलियाई कोयले का सबसे बड़ा आयातक है।
- 2019 की दूसरी तिमाही में भारत ने ऑस्ट्रेलिया से सालाना आधार पर 25.8 फीसदी अधिक कोयले का आयात किया।
- इस अवधि में चीन के आयात में 8.8 फीसदी की गिरावट रही। इसके बावजूद वह दूसरा सबसे बड़ा आयातक रहा।
भारतीय कोयला संयंत्रों की दयनीय स्थिति
- पवन और सौर संयंत्रों से कम लागत वाली बिजली के उत्पादन और भारत की कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की दयनीय स्थिति के कारण विद्युत उत्पादन में इसके तीसरे स्थान पर पहुँचने की संभावना है।
- चूँकि भारत में 1,97,171 मेगावाट की कोयला संसाधन से उत्पादित विद्युत क्षमता है जिसमें से एक-तिहाई (65,723 मेगावाट) ही हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त है किंतु बड़ा सवाल यह है कि इसे किस प्रकार उपयोग में लाया जाए।
- 2017 में देश के अधिकांश कोयला संयंत्रों ने औसतन केवल 60 प्रतिशत ही बिजली उत्पादन किया। इसके सबसे बड़े कारणों में से एक यह था कि पवन और सौर संयंत्रों द्वारा उत्पादित विद्युत सस्ते दर पर उपलब्ध थी|
- विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कोयला संयंत्रों की क्षमता का उपयोग 52 प्रतिशत से नीचे रहता है, जैसा कि नवीनीकरण ऊर्जा के बढ़ने से संभावित है, तो कोयला आधारित संयंत्रों के अस्तित्व पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।
कोयला गैसीकरण क्या है?
- कोयला गैसीकरण (Coal Gasification) कोयले को संश्लेषण गैस (Synthesis Gas), जिसे सिनगैस भी कहा जाता है, में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है।
- सिनगैस (Syngas) हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का मिश्रण है।
- सिनगैस का उपयोग बिजली के उत्पादन और उर्वरक जैसे रासायनिक उत्पाद के निर्माण सहित विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों में किया जा सकता है।
- कोयला गैसीकरण प्रक्रिया अत्यधिक संभावनाओं से युक्त है क्योंकि कोयला दुनिया भर में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध जीवाश्म ईंधन है।
- इसके अतिरिक्त इसमें निम्न श्रेणी के कोयले का भी उपयोग किया जा सकता है।
- हाल ही में ओडिशा के तालचर उर्वरक संयंत्र को यूरिया और अमोनिया के उत्पादन के लिये कोयला गैसीकरण इकाई शुरू करने का अनुबंध देने का निर्णय लिया गया।
- यह भारत का पहला कोयला गैसीकरण आधारित संयंत्र होगा जिससे प्राप्त गैस का उर्वरक उत्पादन में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाएगा।
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