भारतीय मानवाधिकारों की व्यवस्था और निबंध-हिंदी में

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भारतीय मानवाधिकारों की व्यवस्था और निबंध


भारत में मानवाधिकारों की व्यवस्था – भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है तथा भारतीय संविधान में समानता, न्याय व् स्वतंत्रता के मूल्यों को शामिल किया गया है. आजादी के बाद भारत में मानवाधिकारों के संरक्षण से सम्बंधित निम्नवत उपाय किए गए है-

भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर हस्ताक्षर किए है, तथा मानव गरिमा व् उसके अधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है. समय-समय पर मानवधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ प्रस्तावित सभी संधियों पर भारत ने हस्ताक्षर कर दिए है. भारत वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद् का सदस्य है तथा सक्रीय भूमिका निभा रहा है.

भारत के संविधान में भाग 3 में मौलिक अधिकारों को स्थान दिया गया है, जिसमें स्वतंत्रता , समानता, धार्मिक स्वतंत्रता तथा अल्पसंख्यकों के विशेष अधिकारों को शामिल किया गया है.

भारत के संविधान के निति निर्देशक तत्वों में नागरिकों को सामजिक व् आर्थिक अधिकारों को स्थान दिया गया है तथा एक समतापूर्ण समाज की स्थापना का संकल्प लिया गया है.

राष्ट्रिय मानवधिकार आयोग – 1993 में संसद के एक कानून द्वारा राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई है. मानवाधिकार के उल्लंघन के मामले में इस आयोग को सिविल कौर्ट की शक्तियां प्राप्त है, यह आयोग उल्लंघन के मामलों की जांच कर सरकार को उचित कार्यवाही हेतु अपनी संस्तुति प्रस्तुत करता है. आयोग का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होता है. आयोग का मुख्य कार्य मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जांच करना तथा उनके संरक्षण के लिए सिफारिश करना है. आयोग को सिविल न्यायालय की शक्ति प्राप्त है. वर्तमान में आयोग ने बच्चो के मानवाधिकार विशेषकर बाल श्रमिकों की समस्या, महिलाओं के मानवाधिकार की समस्या , सफाई कर्मचारियों के अधिकारों की समस्या, अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के उत्पीडन व् विकलांग व्यक्तियों के मानवाधिकारों के मुद्दों को अपने कार्यों में प्राथमिकता दी है.

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता , स्वेच्छिक संगठनों तथा मानवाधिकार की संस्थाओं के माध्यम से भी इन अधिकारों की रक्षा का प्रयास किया जाता है.

भारत में अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति , अन्य पिछड़े वर्गों तथा समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान व् कानूनों में विशेष उपाय किए गए है.

मानवाधिकारों के प्रकार

मानवाधिकारों की उक्त सार्वभौमिक घोषणा में पांच प्रकार के मानवाधिकारों को शामिल किया गया है-

  1.  नागरिक अधिकार – नागरिक अधिकारों के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , भ्रमण की स्वतंत्रता , संघ बनाने की स्वतंत्रता , राष्ट्रीयता प्राप्त करने की स्वतंत्रता तथा शरण पाने की स्वतंत्रता के अधिकारों को शामिल किया गया है, ये वे अधिकार है, जो किसी व्यक्ति को नागरिक के रूप में प्राप्त होते है. आमतौर पर नागरिक अधिकारों का समावेश प्रत्येक लोकतांत्रिक देश के संविधान अथवा कानूनों में किया जाता है.
  2.  राजनितिक अधिकार – राजनितिक अधिकारों का सम्बन्ध नागरिकों द्वारा अपने देश की राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने से है. मानव के राजनितिक अधिकारों में राजनितिक व्यवस्था में भाग लेने का अधिकार, चुनाव लड़ने तथा मत देने का अधिकार एवं सार्वजनिक पदों को प्राप्त करने का सामान अधिकार आदि को शामिल किया गया है. राजनितिक अधिकार एक लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना करने में सहायक है. कोई भी समाज इन राजनितिक अधिकारों के बिना लोकतंत्र होने का दावा नहीं कर सकता है .
  3. आर्थिक अधिकार – आर्थिक अधिकार व्यक्ति के आर्थिक जीवन से सम्बंधित है. आर्थिक मानवाधिकारों में पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, विश्राम का अधिकार तथा विपत्ति में सामाजिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार आदि को शामिल किया गया है. वास्तविकता यह है की आर्थिक अधिकारों के बिना राजनितिक व् नागरिक अधिकार भी कोरी कल्पना बन कर रह जाते है.
  4.  सामाजित अधिकार – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा इस नाते उसे कतिपय मानवाधिकार प्राप्त होते है. सामजिक श्रेणी के मानव अधिकारों में शिक्षा का अधिकार तथा परिवार बसाने के अधिकार को शामिल किया गया है. भारत में भी शिक्षा के अधिकार को 2002 में मौलिक अधिकारों की सूचि में शामिल कर लिया गया है.
  5.  सांस्कृतिक अधिकार – सांस्कृतिक अधिकारों में अपने समुदाय के सांस्कृतिकजीवन में भाग लेने का अधिकार तथा सांस्कृतिकव् वैज्ञानिक विकास के फलस्वरूप प्राप्त नेतिक व् भौतिक हितों के संरक्षण का अधिकार शामिल है. इन सांस्कृतिक अधिकारों के बिना मानव संस्कृति का विकास संभव नहीं है.

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