भारत के 1857 की क्रान्ति का इतिहास-हिंदी में

इस पोस्ट में हम आपको भारत के 1857 की क्रान्ति का इतिहास के बारे में जानकारी देंगे, क्युकी इस टॉपिक से लगभग एक या दो प्रश्न जरूर पूछे जाते है तो आप इसे जरूर पड़े अगर आपको इसकी पीडीऍफ़ चाहिये तो कमेंट के माध्यम से जरुर बताये| आप हमारी बेबसाइट को रेगुलर बिजिट करते रहिये, ताकि आपको हमारी डेली की पोस्ट मिलती रहे और आपकी तैयारी पूरी हो सके|

भारत के 1857 की क्रान्ति का इतिहास


भारत देश को स्वतंत्रता आप सभी को पता होगा की 15 अगस्त 1947 को हमारा भारत देश बिर्टिश गुलामी से आजाद हुआ था परन्तु जब भी भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के इतिहास में पड़ें तो सन 1857 की क्रांति का वर्णन भी देखने को मिलता हैं. 1857 की क्रांति सैनिको के विद्रोह के लिए शुरू हुआ था. 10 मई 1857 को ब्रिटिश इंडिया कंपनी के सैनिकों के सरकार के खिलाफ एक आन्दोलन की शुरुआत की थी इस संग्राम को मेरठ शहर से शुरू किया गया और धीरे धीरे ये क्रान्ति अनेक शहर जैसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली, गुडगाँव में भी शुरू हो गई थी. यह क्रान्ति भारत की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम क्रान्ति भी कही जाती हैं.

1857 की क्रांति के बहुत कारण थे परन्तु यहाँ हमने कुछ मुख्य कारणों का वर्णन किया हैं जोकि निचे दिए गए हैं.

अचानक विद्रोह के भड़क उठने का कारण ब्रिटिश सेना में कारतूस का प्रयोग किया जाना था सैनिको को सूचना मिली के उनके द्वारा उपयोग किया जाने वाला एनफील्ड रायफल का कारतूस गाय एवं सूअर की चर्बी से बनाया गया है. आप सभी जानतें होंगे की हिन्दुओं में गाय को एक धर्म के रूप में माना जाता हैं और इस्लाम में सुअर को हराम माना जाता हैं, यह एक ऐसी खबर थी जिसके सुनकर हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मों के लोगो में सरकार के प्रति क्रोध की ज्वाला उठ गयी और उन्होंने कारतूसों का प्रयोग करने से साफ़ इनकार कर दिया. ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीय हिन्दू और मुसलामानों की संख्या विदेशी सेनिकों से अधिक थी और विदेशी सेना से कम भारतीय सेनिको को कम पगार मिला करती थी. लार्ड कैनिंग द्वारा निकला गया वर्ष 1856 में एक कानून के अंतर्गत ब्रिटेन जा कर सभी सेनानियों को नौकरी भी करनी पद सकती थी. उस समय समुद्र यानी काला पानी पार करना हिन्दुओं धर्म में निषेद माना जाता था इसके कारन भारतीय सिपाहियों को लगता था की उनको समुद्र पार करने पर हिन्दू से इसाई धर्म का अपनाना होगा. अवध के नवाब की सेना भी अंग्रेजो के शत्रु बने क्यूंकि उन्होंने अवध की शक्तियां समाप्त कर दी और उनकी सभी निजी सेना को खारिज कर दिया और इसके बाद सभी सैनिको का रोजगार भी समाप्त हो गया.

इस विद्रोह में एक महत्वपूर्ण कारन राजनीती का भी था जिसमे देश के सभी राजाओं और नवावो का विलय बिर्टिश सरकार अपने देश के क्षेत्रो में कर रही थी . सिर्फ यह ही नहीं बल्कि देश के अधिकतर राजाओं से उनका अधिकार एवं शासन भी छीन लिया गया था इस कारण इसका भय उन राजाओ एवं नवावो के मन में भी बैठ गया जिनके पास उनके अधिकार बचे हुए थे. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई जी के गोद लिए बच्चे को भी अंग्रेजो ने उनकी गद्दी पर हुकूमत नहीं करने दी और उनके अनेक राज्यों में धीरे धीरे अपना अधिकार जमा लिया.

सामाजिक एवं धार्मिक कारण के चलते मिशनारियों को बिर्टिश सरकार ने आदेश दिया की वे अपने धर्म में बदलाव करे और इसाई धर्म को अपना धर्म बनाये जिसके चलते हिन्दू मुस्लिम समुदाय में अंग्रेजो के प्रति और नफरत बढ रही थी. बिर्टिश शासन में कुछ कानून स्त्रियों से सम्बंधित थे जिनमे विधवा विवाह, भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाओं को लागू किया जिससे लोगो को लगा की उनकी पुराने समय से चली आ रही सामाजिक व्यवस्थाओं को समाप्त किया जा रहा हैं.

एक विद्रोह का आर्थिक कारण भी रहा जिसमे सरकार देश के गावों के लोगो की जमीन पर अधिकार जमा रही थी इंग्लेंड में औद्योगिक क्रान्ति होने के बाद सरकार विदेशी सामान वस्तुए भारत में लाकर व्यापार कर रही थी जिसके चलते भारतीय व्यपार के लोगो को काफी घाटा एवं नुकसान का समाना करना पड़ रहा था.

बंगाल के बैरकपुर में मंगल पाण्डेय जी ने इस विद्रोह की शुरुआत की और उसके बाद यह विद्रोह धीरे धीरे बढ़ने लगा मंगल पाण्डेय के बाद मेरठ के लगभग 85 सैनिको ने बिर्टिश सरकार के 20 अंग्रेजी अफसरों हत्या कर दी जिसके बाद वे बहादुर शाह जफर से मिलने दिल्ली गये और उन्हें हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित किया. इस युद्ध में वह सिपाही भी शामिल थे जिनपर बिर्टिश सरकार ने पाबंदियाँ लगाई थी और इस युद्ध में मुख्य भूमिका बेगम हजरत महल की थी परन्तु इसमें सफलता नहीं मिली जिसके चलते बेगम हजरत महल जी को नेपाल जाता पड़ा. कानपूर के नाना साहेब ने भी इस विद्रोह की कामन संभाली जिसमे इन्होने जीत हासिल की और अपने आपको को वह का पेशवा घोषित कर लिया परन्तु इस जीत का ज्यादा समय तक असर नहीं रहा. बात करे झांसी की रानी की तो उन्होंने इस विद्रोह में अपनी खूब भूमिका निभाई और और समय उनकी उम्र महज 22 वर्ष की थी इन्होने एक जाबाज पराक्रम से अंग्रेजो का सामना किया और अंग्रेजो को धुल चटाई परन्तु अंग्रजी सेना की संख्या ज्यादा होने कारण इन्हें असफलता मिली.

इस विद्रोह में असफलता के भी अनेक कारण थे, इस क्रान्ति को कम समय में देश के कई जगहों तक फ़ैल दिया परन्तु देश के कुछ हिस्से ऐसे थे जहाँ पर इस विद्रोह को नहीं जाना गया. भारत का दक्षिण हिस्सा इस विद्रोह में बिलकुल शामिल नहीं था. इस विद्रोह में सिंधिया, होलकर, जोधपुर के राणा जैसे योद्धाओं ने हिस्सा नहीं लिया. इस क्रान्ति में बहुत से योद्धाओं जैसे नाना साहब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई आदि ने लड़ाई लड़ी परन्तु इस क्रांति को सही नेतृत्व नहीं दे सके. क्रन्तिकारी योद्धाओं पर साधनों जैसे अस्त्र्त-शास्त्र , धन आदि का न होना भी एक बहुत बड़ी विफलता का कारण था. सिर्फ यही नहीं जो व्यक्ति अंग्रेजी बोलना व् समझना जानते थे उन्होंने बिर्टिश शासकों का साथ दिया जिसके कारण अंग्रेजी सेना और अधिक शक्तिशाली बन गए.

इस विद्रोह के चलते यूरोपीय और भारतीय व्यक्तियों के मध्य खटास पैदा हो गई और देश के लोगो ने सरकार के शिक्षण संस्थानों में जाना पसंद नहीं किआ जिससे उनके बीच जाति, धर्म, धार्मिक अंधविश्वास बढ़ गए और इसका प्रभाव हिन्दू-मुस्लिम लोगो पर पड़ा और दोनों धर्मों के बीच एक दुसरे के प्रति नफरतें पैदा हो गयी जिसके चलते भारत विभाजन के दौरान देश को दो भागो में बांटा

इस विद्रोह के परिणाम का व्याख्यान करें तो सबसे बड़ा परिणाम था संवैधानिक तब्दीलियाँ इसमें सत्ता का स्थानांतरण था. इस क्रान्ति के बाद देश का शासन बिर्टिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के पास से बिरतें सरकार के पास चला गया फिर देश में बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल के अध्यक्ष के रूप में राज्य महासचिव की नियुक्ति होने लगी. दो भागों में बंटा ब्रिटिश, आर्मी किंग्स फोर्स’ और ‘कंपनी ट्रूप’ एक सेना में बना दिया गया जिसे ‘किंग्स फोर्स’ कहा गया. महारानी विक्टोरिया के हाथ में सत्ता आने पर उन्होंने घोषणाएं की, कि व्यपगत के सिद्धांत को समाप्त कर दिया जाएंगा और देश के व्यक्तियों को उनकी काबिलियत एवं अनुभव के अनुसार नौकरी पदों पर नियुक्त किया जाएगा साथ ही किसी भी भारतीय व्यक्ति के धार्मिक एवं जातीय मामलों में सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी. सभी भारतीय व्यक्ति जिनको कैद किया गया था उनको रिहा कर दिया जाएगा सिर्फ वही लोग कैद से रिहा नहीं होंगे जिन्होंने घम्भीर अपराध किए थे.

आप सभी जानते हो इस विद्रोह को 1857 की क्रांति कहा जाता हैं परन्तु विद्रोह को कई और अनेक नामों से जाना गया जैसे इस विद्रोह को हिंदुस्तान की पहली लड़ाई भी कही गई और आर सी मजुमदार ने इस क्रान्ति को सिपाही विद्रोह नाम दिया.


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