Lokpal in India (भारत में लोकपाल)
मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के आखिरी समय में लोकपाल की नियुक्ति कर विपक्ष के हाथ से बड़ा मुद्दा छीन लिया है। इससे न केवल चुनावी मैदान ने विपक्ष की धार कुंद होगी बल्कि भाजपा को फायदा भी मिल सकता है। लोकपाल प्रधानमंत्री से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तक के खिलाफ भष्टाचार के मामले की सुनवाई कर सकता है। हालांकि सेना को लोकपाल के दायरे से दूर रखा गया है।
भारत में लोकपाल (Lokpal in India)
सन 1967 के मध्य तक लोकपाल संस्था 12 देशों में फैल गई थी। भारत में भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने प्रशासन के खिलाफ नागरिकों की शिकायतों को सुनने एवं प्रशासकीय भ्रष्टाचार रोकने के लिए सर्वप्रथम लोकपाल संस्था की स्थापना का विचार रखा था। जिसे उस समय स्वीकार नहीं किया गया था।
भारत में साल 1971 में लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया गया जो पांचवी लोकसभा के भंग हो जाने से पारित नहीं हो सका। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकपाल विधेयक 26 अगस्त 1985 को संसद में पेश किया गया और 30 अगस्त 1985 को संसद में इस विधेयक के प्रारूप को पुनर्विचार के लिए संयुक्त प्रवर समिति को सौंप दिया, जो पारित नहीं हो सका।
कौन होगा लोकपाल में (Who will be in Lokpal)
- लोकपाल का एक अध्यक्ष होगा जो या तो भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश या फिर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज या फिर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकते हैं.
- लोकपाल में अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए.
- इसके अलावा कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए.
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लोकपाल कौन नहीं हो सकता? (Who can not be a Lokpal)
- संसद सदस्य या किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा का सदस्य
- ऐसा व्यक्ति जिसे किसी किस्म के नैतिक भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया हो.
- ऐसा व्यक्ति जिसकी उम्र अध्यक्ष या सदस्य का पद ग्रहण करने तक 45 साल न हुई हो.
- किसी पंचायत या निगम का सदस्य
- ऐसा व्यक्ति जिसे राज्य या केंद्र सरकार की नौकरी से बर्ख़ास्त या हटाया गया हो.
चयन समिति
- प्रधानमंत्री- अध्यक्ष
- लोकसभा के अध्यक्ष-सदस्य
- लोकसभा में विपक्ष के नेता-सदस्य
- मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुशंसा पर नामित सुप्रीम कोर्ट के एक जज-सदस्य
- राष्ट्रपति द्वारा नामित कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति-सदस्य
- अध्यक्ष या किसी सदस्य की नियुक्ति इसलिए अवैध नहीं होगी क्योंकि चयन समिति में कोई पद रिक्त था.
लोकपाल के अधिकार (Rights of Lokpal)
तलाशी और जब़्तीकरण
- कुछ मामलों में लोकपाल के पास दीवानी अदालत के अधिकार भी होंगे.
- लोकपाल के पास केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवा का इस्तेमाल करने का अधिकार होगा.
- संपति को अस्थाई तौर पर नत्थी (अटैच) करने का अधिकार.
- नत्थी की गई संपति की पुष्टि का अधिकार.
- विशेष परिस्थितियों में भ्रष्ट तरीक़े से कमाई गई संपति, आय, प्राप्तियों या फ़ायदों को ज़ब्त करने का अधिकार.
- भ्रष्टाचार के आरोप वाले सरकारी कर्मचारी के स्थानांतरण या निलंबन की सिफ़ारिश करने का अधिकार.
- शुरुआती जांच के दौरान उपलब्ध रिकॉर्ड को नष्ट होने से बचाने के लिए निर्देश देने का अधिकार.
- अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकार.
- केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई के लिए उतनी विशेष अदालतों का गठन करना होगा जितनी लोकपाल बताए.
- विशेष अदालतों को मामला दायर होने के एक साल के अंदर उसकी सुनवाई पूरी करना सुनिश्चित करना होगा.
- अगर एक साल के समय में यह सुनवाई पूरी नहीं हो पाती तो विशेष अदालत इसके कारण दर्ज करेगी और सुनवाई तीन महीने में पूरी करनी होगी. यह अवधि तीन-तीन महीने के हिसाब से बढ़ाई जा सकती है.
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लोकपाल का कार्यकाल (Tenure of Lokpal)
लोकपाल अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से पांच वर्ष या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने जो भी पहले हो तक के लिए पद पर बने रहेंगे
कौन हैं पिनाकी चंद्र घोष, जो होंगे देश के पहले लोकपाल
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस पीसी घोष को देश का पहला लोकपाल बनाने की सिफारिश की गई है. दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, प्रख्यात कानूनविद मुकुल रोहतगी की चयन समिति ने उनका नाम तय किया है और उनके नाम की सिफारिश की है.
28 मई 1952 को जन्में पीसी घोष का पूरा नाम पिनाकी चंद्र घोष है और वो जस्टिस शंभू चंद्र घोष के बेटे हैं. वो सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके हैं और कई राज्य के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. अभी पीसी घोष मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं.
उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से बीकॉम और यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता से एलएलबी की पढ़ाई की है. वे कलकत्ता हाईकोर्ट के अटॉर्नी एट लॉ भी बने थे
वे साल 1997 में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज बने और उसके बाद दिसंबर 2012 में उन्होंने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. दो साल पहले मई 2017 में घोष सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे और वो 2013 से 2017 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे.
इसके अलावा वो वेस्ट बंगाल स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन, नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के सदस्य भी रह चुके हैं. साथ ही उन्होंने कई पदों पर कार्यभार संभाला है.
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सुप्रीम कोर्ट के जज के तीन साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अहम फैसले सुनाए थे. उनके इन फैसलों में तमिलनाडु की पूर्व सीएम जयललिता की सहयोगी रही शशिकला को लेकर दिया गया फैसला भी शामिल है. दरअसल उन्होंने शशिकला को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी ठहराया था.
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