चोल राजवंश में कैसे होता था सत्ता का परिवर्तन आइए जाने विस्तार से …

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चोल राजवंश में कैसे होता था सत्ता परिवर्तन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन कर औपनिवेशिक काल की एक और बड़ी निशानी को हटा देंगे. इसके साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी नए संसद भवन में सेंगोल यानी राजदंड स्थापित करेंगे. नए संसद भवन के उद्घाटन पर पीएम मोदी को मदुरै के 293वें प्रधान पुजारी हरिहर देसिका स्वामीगल राजदंड देंगे. इस राजदंड सेंगोल का इतिहास चोल राजवंश और करीब 2000 साल पुराना है.

उस दौर में सत्ता परिवर्तन के समय इस राजदंड सेंगोल का इस्तेमाल किया जाता था. ठीक उसी तरह अंग्रेजों से आजादी के समय भारत को सत्ता हस्तांतरित करने के प्रतीक के तौर पर देश के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू को यह ऐतिहासिक राजदंड सेंगोल दिया गया था. आइए जानते हैं कि चोल राजवंश में सत्ता परिवर्तन पर राजदंड का इस्तेमाल कैसे किया जाता था?

चोल राजवंश में सत्ता का परिवर्तन कैसे होता था आइए जाने 

बताया जाता है कि चोल राजवंश की परंपरा के अनुसार, राजा के वृद्ध या निधन हो जाने के बाद सत्ता का हस्तांतरण किया जाता था. जब सत्ता का हस्तांतरण होता था तो पवित्र राजदंड सेंगोल को मुख्य पुजारी के हाथों नए राजा को दिलवाया जाता था. चोल राजवंश की परंपरा के अनुसार ही 28 मई को भी मदुरै के प्रधान पुजारी पीएम मोदी को राजदंड सौंपेंगे.

कैसे दिया जाता था राज्याभिषेक की प्रक्रिया को अंजाम आइए जाने 

इतिहास के अनुसार, इस दौरान चोल राजवंश की परंपरा के अनुसार राज्याभिषेक का कार्यक्रम आयोजित किया जाता था. चिदंबरम मंदिर के पुजारियों को चोल राजाओं के राज्याभिषेक कार्यक्रम का आमंत्रण दिया जाता था. दरअसल, राज्याभिषेक का कार्यक्रम इन्हीं पुजारियों की देख-रेख में होता था तो इनकी उपस्थिति बहुत जरूरी होती थी.

वैदिक रीतिरिवाजों के साथ दिया जाता था राजदंड

इतिहास के अनुसार, चोल वंश के अधिकांश शासक भगवान शिव के उपासक थे. शैव संप्रदाय को मानने वाले चोल वंश के शासकों के साम्राज्य में वैष्णव, बौद्ध और जैन संप्रदाय भी काफी फले-फूले थे. हालांकि, चोल वंश में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया में वैदिक रीतिरिवाजों को काफी महत्व दिया जाता था.

वैदिक मंत्रोच्चारों के बीच सैकड़ों पुजारियों की उपस्थिति में सत्ता परिवर्तन का सूचक राजदंड चिदंबरम मंदिर के प्रधान पुजारी के हाथों से नए राजा को दिया जाता था. राज्याभिषेक में सभी वैदिक रीति-रिवाजों का पालन किया जाता था. चोल वंश शैव संप्रदाय का हिस्सा था, जो हिंदू धर्म के अंतर्गत ही आता है.

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