उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के बारे में जाने-हिंदी में
इस पोस्ट में हम आपको उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के बारे में जानकारी देंगे, क्युकी इस टॉपिक से लगभग 4 या 5 प्रश्न जरूर पूछे जाते है तो आप इसे जरूर पड़े अगर आपको इसकी पीडीऍफ़ चाहिये तो कमेंट के माध्यम से जरुर बताये| आप हमारी बेबसाइट को रेगुलर बिजिट करते रहिये, ताकि आपको हमारी डेली की पोस्ट मिलती रहे और आपकी तैयारी पूरी हो सके|
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के बारे में जाने
उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में लगभग 8० से 24० आक्षांशों के मध्य सागरीय क्षेत्रों में उत्पन्न एवं विकसित होने वाली चक्रवातों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है। कर्क तथा मकर रेखा के मध्य विकसित होने वाली यह चक्रवात दो व्यपारिक पवनों के मिलने से उत्पन्न होती है। जिस तल में ये पवनें मिलती है उस क्षेत्र को अंतर उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र या अंतर उष्ण कटिबंधीय वाताग्र कहा जाता है। यह क्षेत्र सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन होने के कारण भूमध्य रेखा से उत्तर कर्क रेखा की ओर तथा दक्षिण में मकर रेखा की ओर स्थानांतरित होते रहता है।
इसी कारण से यह ग्रीष्म ऋतू में लगभग 20 ० उत्तरी अक्षांश के आस-पास एवं शीत ऋतू में यह 20० दक्षिणी अक्षांश के आस-पास समुद्री क्षेत्रो में विकसित होती है।
ये चक्रवात आक्रमक तूफान होते है जिसकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में होती है और ये तटीय क्षेत्रों की ओर गतिमान होती है ये चक्रवात आक्रमक पवनो के कारण विशाल पैमाने पर विनाश, अत्यधिक वर्षा एवं तूफान लती है।
हिन्द महासागर में इसे “चक्रवात”, अटलांटिक महासागर में इसे “हरीकेन” तथा पश्चिमी आस्ट्रेलिया में “विली-विलीज” के नाम से जाना जाता है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ क्या है
किसी भी उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति एवं विकास के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ होना आवश्यक होता है।
- विस्तृत समुद्री क्षेत्र का होना चाहिए जहाँ तापमान 270 C से अधिक हो।
- कोरिओलिस बल की उपस्थिति होनी चाहिए।
- ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में अंतर होना चाहिए।
- कमजोर निम्न दाब का क्षेत्र या निम्न स्तर का चक्रवातीय परिसंचरण होना चाहिए।
- समुद्री तल तंत्र पर हवावों का अपसरण होना चाहिए।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का आकार तथा विस्तार क्या होता है
इसका समान्य व्यास 500 से 800 किमी तक पाया जाता है। आकार समान्यतः वृताकार होता है। वृताकार समदाब रेखाओं से घिरा हुआ इसके केंद्र पर अल्प तापमान तथा वायुदाब 920 से 950 मिलीबार तक पाया जाता है। इन चक्रवातों की ऊंचाई 1 किमी से 1.5 किमी तक होती है। हिन्द महासागर में इसका व्यास 600 से 1200 किमी के मध्य पाया जाता है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवाती पवनो का वेग तथा प्रवाह
इस प्रकार के चक्रवात में समदाब रेखाएँ एक दूसरे से नजदीक में होती है तथा अधिक होती है जिसके कारण उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का दाब प्रवणता पवनों का वेग अधिक होता है। जिसके कारण पवनों का गति 120 से 200 किमी प्रति घंटा होता है। चक्रवात के केंद्र में पवनों का वेग और अधिक होता है। जिससे ये चक्रवात काफी विनाशकारी हो जाते है। यह धीमी गति से 300 से 500 किमी प्रति दिन की दर से आगे बढ़ती है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का संचालन
यह उष्ण कटिबंधीय चक्रवात ऊपरी क्षोभ मंडल के पवनों के साथ पूरब से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। इसकी औसत गति 15 से 30 किमी प्रति घंटा होती है। महासागरों के पश्चिमी किनारे पर पहुंचने के बाद यह ध्रुवो। की ओर मुड़ जाती है। तथा स्थलीय भागो में धीरे-धीरे क्षीण हो जाती है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात एवं वर्षा
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के केंद्रीय भाग के चारो ओर एक संकरी पेटी में अधिकांश वर्षा संकेंद्रित होती है इसकी तीव्रता, आकार एवं विस्तार के अनुसार वर्षा की मात्रा प्रभावित होती है। इनके मार्गो में अवरोध की मात्रा भी वर्षा को प्रभावित करती है। आयनवर्ती क्षेत्रो में ग्रीष्मकाल के अंत तथा शरद ऋतू के प्रारम्भ में इससे अधिकांश वर्षा होती है। सामान्य रूप से एक चक्रवातीय तूफान से 12 से 25 Cm तक वर्षा होती है। परन्तु इसके मार्ग में अवरोध आने से वर्षा 75 से 100 Cm तक होती है।
चक्रवात का लैंड फॉल क्या है
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की ऊर्जा कपासी स्तरीय बादलों के बनने अर्थात संघनन की प्रक्रिया से प्राप्त होती है। जब चक्रवात समुद्र में होता है तब समुद्र से लगातार आर्द्रता की आपूर्ति होते रहती है और संघनन की प्रक्रिया प्रबल होती है। किन्तु जैसे ही यह तट को पर करके स्थल की ओर बढ़ती है आर्द्रता की आपूर्ति रुक जाती है। और ये क्षीण होकर समाप्त होने लगता है।
वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तट को पार करके जमीन पर पहुँचती है चक्रवात का लैंड फॉल कहलाता है। इस क्षेत्र में ये चक्रवाती तूफान काफी तबाही मचाता है।
चक्रवात की आँख या चक्रवात चक्षु क्या है
एक विकसित उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की सबसे बड़ी विशेषता इसके केंद्र पर शांत क्षेत्र पाया जाता है जिसके ऊपर आकाश खुला या बादल रहित होता है इस वृताकार केंद्रीय क्षेत्र को चक्रवात की आँख या चक्रवात चक्षु कहा जाता है। इस भाग में हवाओं का वेग विल्कुल कम होता है तथा तापमान अधिक और आर्द्रता कम होती है। यहाँ पर पवनों का अवतलन होता है।
चक्रवात चक्षु का व्यास समान्यतः लगभग 24 किमी होता है। किन्तु विभिन्न चक्रवातों में इसकी व्यास की लम्बाई 8 से 80 Km अंकित की गई है। पवन चक्षु के चारो ओर प्रबल, तेज तथा सर्पिल ( Spiral ) पवनों का परिसंचरण होता है। इसी परिसंचरण में पवनों का वेग सबसे अधिक अर्थात 500 किमी प्रति घंटा हो सकती है तथा इसका व्यास 150 से 250 किमी होता है। इसके चारो ओर ऊपर आसमान में काली कपासी मेघ का विकास संघनन के कारण होते रहता है जिसे रेनवैन्ड कहा जाता है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का प्रदेशिक वितरण क्या
इन चक्रवातों का वितरण विश्व के छः प्रदेशों में पाया जाता है जो निम्न इस प्रकार है।
1 . उष्ण कटिबंधीय उत्तरी पश्चिमी अटलांटिक महासागर।
- पश्चिमी द्वीप समूह,
- मैक्सिको की खाड़ी तथा
- कैरिबियन सागर
यहाँ इसे “हरिकेन” ( Hurricane ) के नाम से जाना जाता है।
2 . उत्तरी प्रशांत महासागर के पूर्वी आयनवर्ती क्षेत्र।
- फिलीपींस
- चीन सागर
- जापान सागर
यहाँ इसे “टाइफून” ( Typhoons ) कहा जाता है।
3 . हिन्द महासागर में।
- बंगाल की खाड़ी- भारत, बांग्ला देश श्रीलंका, मालद्वीव
- अरब सागर – भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, मालद्वीव, अमान, ओमान, UAE आदि
इन क्षेत्रो में इसे “चक्रवात” (Cyclone ) कहा जाता है।
4 . दक्षिण पश्चिम हिन्द महासागर
- मेडागास्कर से 900 पूर्वी देशांतर रेखा तक -मेडागास्कर, मॉरीसस, अफ्रीका के दक्षिण पूर्वी भाग
5 . उत्तरी प्रशांत महासागर के पूर्वी आयनवर्ती क्षेत्र।
- मैक्सिको
- मध्य अमेरिका के पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र
6 . दक्षिणी पश्चिमी प्रशांत महासागर।
- समोआ
- फिजी द्वीप समूह
- आस्ट्रेलिया के पूर्वी तटवर्ती क्षेत्र
इसमें प्रमुख रूप से प्रशांत महासागर के उत्तर पश्चि तट के निकट तिमोर सागर में तथा 170 ० पश्चिमी देशांतर रेखा से क्वींसलैंड तथा न्यू साऊथ वेल्स के पूर्वी तट के बिच विकसित होता है।
इन क्षेत्रो में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात को “विली-विलीज” ( Willy-Willes ) के नाम से जाना जाता है।
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